पारद का परिचय , उत्पत्ति, भेद व मुख्य खनिज , Introduction, origin, types and main ore's of mercury
पारद का परिचय , उत्पत्ति, भेद व मुख्य खनिज , Introduction, origin, types and main ore's of Mercury
आयुर्वेद में रसशास्त्र बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। रसशास्त्र, में रस शब्द से पारद को ग्रहण किया जाता है। यद्यपि संस्कृत साहित्य एवं आयुर्वेद वांग्मय में रस शब्द से अनेक शब्दों का ग्रहण किया जाता है । यथा—पारद, स्वरस, जल, द्रव, निर्यास, स्वाद, हर्ष, अनुराग, ध्वनि, बालक, सुवर्ण, विष, अमृत, शुक्र, वीर्य, मधुरादि षड्रस, शृंगरादि नव रस, शरीर के सप्त धातुओं में आद्य आहार परिणाम धातुरस तथा रास्ना, पाठा, शल्लकी आदि द्रव्यों को भी रस शब्द से सूचित किया गया है।
रस ही ब्रह्म है ऐसी श्रुतियों का वचन है। इस रस को प्राप्तकर पुरुषार्थ करने वाला पुरुष आनन्द को प्राप्त करता है, सिद्ध होता है, तृप्त होता है तथा परम आनन्दमय अमृतत्व को प्राप्त करता है।
रसशास्त्र में रस शब्द की निम्नलिखित निरुक्ति दी गयी है —
(1) रसनात् सर्वधातूनां रस इत्याभिधीयते।
अर्थात् पारद सभी धातुओं को खो जाता है अत: इसे रस कहते हैं।
रसति भक्षयति सर्वान् लोहान् इति रसः ।
(2) पारद रस वर्ग तथा उपरस में परिगणित द्रव्यों से श्रेष्ठ होने अथवा सभी का राजा होने से रस कहा जाता है —
रसोपरसराजत्वात् रस इत्यभिधीयते।
(3) रसत्वाद् द्वरुपत्वात् सः ।
अर्थात् पारद चूँकि द्रव रुप होता है अत: इसे रस कहते हैं।
(4) मम देहरसो यस्माद् रसस्तेनायमुच्यते। (रसार्णव)
शिव का वीर्य होने से इसे रस कहते हैं। शिव पार्वती से कहते हैं कि यह पारद मेरे शरीर का रस है अत: इसको रस कहते है।
(5) जरारुङ्मुत्युनाशय रस्यते वा रसो मतः। (र.र. समु.)
इस पारद को खाने से रोग, जरा तथा मृत्यु नष्ट हो जाते हैं, अत: इसे रस कहते हैं।
रसशास्त्र का मूल द्रव्य पारद है। धातुओं को अपने में आत्मसात् करने की शक्ति के कारण ही इसे रस कहते हैं। इस रस को लक्ष्य कर जो शास्त्र लिखा गया हो उसे रसशास्त्र कहते हैं। इस शास्त्र के अन्तर्गत रस, उपरस, धातुओं का विस्तारपूर्वक वर्णन, यन्त्र, पुट आदि उपकरणों की रचना, पारद के संस्कार, धातुओं के शुद्धिकरण हेतु आवश्यक भिन्न-भिन्न क्रियाओं तथा प्रयोगों का तथा धातुओं की शुद्धि, सत्व, द्रुति, तथा भस्मीकरण इत्यादि अनेक विषयों का भी सविस्तार से वर्णन किया गया हो वही रसशास्त्र का विवेच्य विषय है।
रस (पारद) (Mercury)
सांकेतिक नाम — Hg
परमाणु संख्या (Atomic number) — 80
परमाणु भार (Atomic Weight) — 200.6
परमाणु बन्धन क्षमता — 2
हिमांक (Freezing Point) — 36°C
गलनांक (Melting Point) — 35.87°C
क्वथनांक (Boiling Point) — 357.25°C
आपेक्षिक घनत्व — 12.59
विशिष्ट गुरुत्व — 13.56
यद्यपि रस शब्द के अनेक अर्थ हैं परन्तु रस शास्त्रीय अध्ययन में रस शब्द पारद (Mercury) के लिए प्रयुक्त हुआ है रस शास्त्रीय विषय वस्तु की मुख्य विवेच्य द्रव्य पारद (रस) ही है पारद सम्बन्धी ज्ञान भारतीयों को प्राचीन समय से था जिसके सन्दर्भ वैदिक काल एवं आयुर्वेदीय संहिताओं में उपलब्ध होते हैं पारद पर किए गए शोधों के माध्यम से आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में एक नई किरण स्वरूप आशुकारी चिकित्सा का सूत्रपात हुआ।
पारद की उत्पत्ति — पारद की उत्पत्ति विषयक घटना को आचार्य वाग्भट ने अपने ग्रन्थ 'रसरलसमुच्चय' में निम्न प्रकार से वर्णित किया है। यथा —
शैलेऽस्मिशिवयोः प्रीत्या परस्परजिगीषया।
सम्प्रवृत्ते च सम्भोगे त्रिलोकक्षोभकारिणी॥
विनिवारयितुं वह्निः सम्भोगं प्रेषितः सुरैः।
काश्माणैस्तयोः पुत्रं तारकासुरनामकम् ।।
कपोतरूपिणं प्राप्तं हिमवत् कन्दरेऽनलम्।
अपक्षिभाव सक्षुब्धं स्मरलीला विलोकिनम् ।।
तं दृष्ट्वा लजितः सम्भुर्विरतः सुरतात्तदा।
प्रत्युश्चरमो धातुगृहीतः शूलपाणिना ॥
प्रक्षिप्तो वदने वर्गङ्गायामपि सोऽपतत्।
वह्निः क्षिप्तस्तया सोऽपि परिदन्दह्यमानया।
सजातास्तन्मलाधानाद्धातवः सिद्धिहेतवः।
यावदाग्निमुखानेतो न्यपतद् भूरिसारतः॥
शतयोजननिम्नांस्तान्कृत्त्वा कूपाँस्तु पञ्च च।
तदाप्रभृतिकूपस्थं तद्रेतः पञ्चधाऽभवत् ॥
सम्प्रवृत्ते च सम्भोगे त्रिलोकक्षोभकारिणी॥
विनिवारयितुं वह्निः सम्भोगं प्रेषितः सुरैः।
काश्माणैस्तयोः पुत्रं तारकासुरनामकम् ।।
कपोतरूपिणं प्राप्तं हिमवत् कन्दरेऽनलम्।
अपक्षिभाव सक्षुब्धं स्मरलीला विलोकिनम् ।।
तं दृष्ट्वा लजितः सम्भुर्विरतः सुरतात्तदा।
प्रत्युश्चरमो धातुगृहीतः शूलपाणिना ॥
प्रक्षिप्तो वदने वर्गङ्गायामपि सोऽपतत्।
वह्निः क्षिप्तस्तया सोऽपि परिदन्दह्यमानया।
सजातास्तन्मलाधानाद्धातवः सिद्धिहेतवः।
यावदाग्निमुखानेतो न्यपतद् भूरिसारतः॥
शतयोजननिम्नांस्तान्कृत्त्वा कूपाँस्तु पञ्च च।
तदाप्रभृतिकूपस्थं तद्रेतः पञ्चधाऽभवत् ॥
(र.र. समु.१/६०-६६)
उपरोक्त प्रसङ्गानुसार जब त्रेता युग में तारकासुर राक्षस ने भयंकर उत्पात् मचाया हुआ था तब उस राक्षस से निजात पाने हेतु भगवान शङ्कर का शैलपुत्री पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ, विवाहोपरान्त हिमालय की कन्दरा (गुफा) में शिव-पार्वती एक-दूसरे को हराने की इच्छा से लम्बे समय तक सम्भोग में रत थे त्रिलोक में क्षोभकारी उस सम्भोग क्रिया से विरत करने एवं तारकासुर का वध करने हेतु पुत्र कार्तिकेय के शीघ्र प्राप्त्यर्थ देवताओं ने अग्निदेव से आग्रह किया, देवताओं के आग्रह को स्वीकार कर अग्निदेव कपोत का रूप धर के जब गुफा में पहुँचे और सम्भोग में रत शिव-पार्वती की लीला को छुप कर देखने लगे तब भगवान शिव ने कपोतभेषी अग्निदेव को पहचान लिया, लज्जित शिव ने सम्भोग से विरत होकर स्त्रवित चरम धातु (शुक्र) को हाथ में लेकर अग्निदेव के मुख पर फेंका, उस फैके गए तेजस्वी शक्र को अग्निदेव अधिक समय तक सहन न कर सके और दाह की शान्ति हेतु उस शुक्र को गंगा में छोड़ दिया, गंगा भी शिव शुक्र के तेज को ज्यादा समय तक सहन न कर सकी और उसे लहरों के माध्यम से किनारे सरपत के जंगलों में छोड़ दिया जहाँ पर पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ जिसने तारकासुर का वध कर उसके उत्पात से त्रिलोक को मुक्त कराया,शुक्ररस से पारद एवं शुक्रमल से धातुओं आदि की उत्पत्ति हुई, अग्निदेव के मुख से वह शुक्र भूमि पर पाँच स्थानों पर गिरा जो पाँच कूप (खानें) बने, इस तरह वह वीर्य पाँच प्रकार का कहा गया जो पारद के पाँच भेदों के रूप में रस शास्त्रीय ग्रन्थों में वर्णित हैं उस वीर्य (पारद) का विस्तार सौ योजन तक बतलाया गया है।
उस अलंकारिक घटना को वैज्ञानिक ढंग से समझा जाये तो यह भूमि के अन्दर जड़ एवं चेतनशक्ति के परस्पर संघर्ष का परिणाम माना जाता है।
यहाँ जड़ स्वरूप पार्वती, चेतन स्वरूप भगवान शङ्कर, दोनों के परस्पर संघर्ष को सम्भोग क्रिया, ज्वालामुखी लावा की शिवशुक्र और ज्वालामुखी फटने के समय निकलने वाले धुंए की तुलना कपोत से की गई है, इस तरह हिमालय से ज्वालामुखी निकलने का घटनाक्रम बतलाया गया है, निकला गर्म लावा काफी दूर तक फैलता है जो ठण्डा होने पर भूमि पर विभिन्न धात्वीय परतों के रूप में जम जाता है।
पारद के मुख्य खनिज (Main ore's of Mercury) — पारद मुक्त एवं यौगिक दोनों स्वरूपों में प्राप्त होता है।
मुक्त स्वरूप (Native Mercury) — इस अवस्था में पारद हिंगुल आदि यौगिकों से पृथक हुआ प्राप्त होता है। उसे सहज पारद अथवा गलद् द्रौप्यनिभम् और स्वयंभू पारद के नाम से जाना जाता है।
यौगिक स्वरूप (Compound Mercury) — गन्धक आदि तत्त्वों से युक्त (मिश्रित) पारद को यौगिक कहा जाता है। यथा —
हिङ्गुल (Cinnebar) — यह पारद एवं गन्धक का यौगिक है जो विभिन्न स्वरूप में प्राप्त होता है। जैसे —
(i) हंसपाद हिङ्गुल — यह जपापुष्प (गुडहल फूल) के जैसे रंग वाला होता है। घिसने पर लाल रेखा बनाता है।
(i) दरद हिङ्गुल — यह यकृदाकार हिङ्गल (Hepatic Cinebar) के नाम से जाना जाता है। इसका यह वर्ण इसमें स्थित शिलाजतु के अंश के कारण होता है।
(i) प्रवालाभ हिङ्गुल — 'श्वेतरेख: प्रवालाभो हंसपाद सेतीरितः। (र.र.समु.) मूंगा (Coral) के सदृश वर्ण वाला होता है। इसे हंसपाद हिङ्गुल भी कहा गया है।
(iv) चार हिङ्गुल – 'चार: कृष्णरूप: स्यात्' 'रसकामधेनु ग्रन्थ' में चूंकि कृष्ण जाति का होने से इसे चार हिङ्गुल कहा है। कसौटी पर घिसने से काली रेखा बनती है।
(v) दैत्येन्द्र रक्त (Establerz steel ore) — पारद के इस खनिज को कविराज प्रतापसिंह ने 'दैत्येन्द्र रक्त' कहा है। इससे 75% तक पारद प्राप्त होता है।
(vi) गिरिसिन्दूर (Brick ore) — इसे Red Oxide of mercury कहा गया है। इससे लगभग 68% तक पारद की प्राप्त होती है। इनके अलावा अन्य खनिज भी हैं जिनसे अल्प मात्रा में पारद प्राप्त होता है। यथा कैलोमेल (HgCL), लिविंगस्टोनाइट (2Sb,SHgs) आदि।
पारद के भेद (Type's of Mercury) —
रसो रसेन्द्रः सूतश्च पारदो मिश्रकस्तथा।
इति पञ्चविधो जात: क्षेत्रभेदेन शम्भुजः।। (र.र.समु.१/६७)
रस, रसेन्द्र, सूत, पारद एवं मिश्रक भेद से रस (शम्भु शुक्र) के पाँच भेद बतलाए गए हैं जिनमें से औषधीय योगों में पारद का ही उपयोग प्रचलित है।